यूँ तो कुछ नही अपना यहाँ समेटना चाहता वो सारा जहाँ यूँ तो कुछ नही अपना यहाँ समेटना चाहता वो सारा जहाँ
स्वयं ही तो न फँसिए भ्रम और जाल में अंतर तो समझिए। स्वयं ही तो न फँसिए भ्रम और जाल में अंतर तो समझिए।
भ्रम जाल ये कैसा फैला खुद को खुद ही भूल चुका। भ्रम जाल ये कैसा फैला खुद को खुद ही भूल चुका।
संचय कर जीवन नर्क बनाया, छल-कपट से है धन कमाया संचय कर जीवन नर्क बनाया, छल-कपट से है धन कमाया
वक्त बचा बहुत कम फैला कारोबार है तानों उलाहनों की मची भरमार है वक्त बचा बहुत कम फैला कारोबार है तानों उलाहनों की मची भरमार ...
वो जो उलझन बहुत देर से उलझी थी मेरे मन से। वो जो उलझन बहुत देर से उलझी थी मेरे मन से।